उपन्यास-गोदान-मुंशी प्रेमचंद

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9 मेहता झेंप गये। बिना-ब्याहे थे और नवयुग की रमिणयों से पनाह माँगते थे। पुरुषों की मंडली में ख़ूब चहकते थे; मगर ज्योंही कोई महिला आयी और आपकी ज़बान बन्द हुई। ...

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